।।पत्थर ना हो जाऊं।।
दिल के मंज़र, मेरी कशमकश का इल्म है तुम्हे।
दबे हुए ख्यालों से, पत्थर ना हो जाऊँ
तुम कहते हो रो लूँ, और सब भूल जाऊँ।
हसरतों की फेहरिस्त में, रोना भी शुमार है
तेरे आगे नहीं, बस कागजों पे रोने का खुमार है।
आंसुओं को मिली हँसी का सबक अबतक याद है
अल्फ़ाज़ों की वाहवाही भूली नहीं जाती।
कहो तुम कहो, सामने रो लूँ और कमज़ोर हो जाऊ
या कागजों पर ही रो लूँ, और 'फ़िराक' ही जाऊँ।
मन के वीराने जंगल में, तलाश-ए-ग़म ज़ारी है
कुछ मिलता नहीं रोने को, तो क्यूं दिल भारी है||